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Showing posts from 2018

क्या....? काफी है...?

काफी है.... तेरा ऐसे ही आ जाना और तेरा यूं ही चला जाना... तेरा ऐसे ही शरमाना और यूं ही रूठकर बस रह जाना... काफी है... तेरा एक दीदार पाने को तेरे घर का चक्कर लगाना... और तेरा अपने घर की खिड़की से यूं चुपके से झांक जाना... काफी है... तेरा बेवजह मुझे यूं अपना प्यार बताना और... मेरा नासमझ की तरह उसे ना समझ पाना... लेकिन... क्या काफी है तेरा इस कदर रूठ जाना... और फिर कभी पलटकर ना देखने का हठ कर जाना... क्या....? काफी है...? # hiteshsongara

अभी कल ही की तो बात है...

वो हर सुबह जल्दी मां जगा दिया करती थी, कभी हाथ थामकर तो कभी मारकर स्कूल भगा दिया करती थी... हम भी बेमन अपनी पगडंडी पर उस ओर निकल जाया करते थे, शाम को जल्दी वापस घर आना है, खेलने जाना है..सोच में डूब जाता करते थे.... अभी कल ही की तो बात है.... कुछ बड़े हुए स्कूल छोड़ा और कॉलेज की राह पर खुद ही निकल जाया करते थे, मां सुबह तो अब भी जल्दी ही उठाती थी लेकिन अब हम भी उठ जाया करते थे... घर से निकलते कॉलेज जाते और मस्ती में डूबे शाम को नहीं... हां लेकिन रात को घर की ओर निकल ही आया करते थे.... अभी कल ही की तो बात है...

पगली लड़की मेरे साथ रहने को लड़ती है

अक्सर उसके मुंह से एक बात सुनाई देती है, उसके चेहरे पर हंसी में छुपी एक बात दिखाई देती है. वो नाराज भी है मुझसे और प्यार भी करती है, रूठती भी है मुझसे और मुझे मनाने को भी तरसती है. कई बार समय का हवाला देती है और खुद ही उनमें उलझी रहती है, खुद ही फिर संभालती भी है और खुद ही फिर बिगड़ती है. नाराजगी फिर भी वैसी ही रहती है और मनाने को भी तरसती है. चेहरा भी दिखाती है अपना मुझे और छुपाकर भी रखती है, कुछ कहती है फिर चुप रहती है और फिर बिन कहे बहुत कुछ कह देती है. मेरे साथ चार कदम चलने से भी मना करती है, और फिर जीवन भर साथ रहने का दावा करती है. उसकी हंसी उसकी ख़ुशी और उसकी मुस्कान बहुत कुछ कहती है. साथ देने का वादा भी मुझसे करती है और पगली लड़की मेरे साथ रहने को भी लड़ती हैं. 

अब नींद की तलाश नहीं...!!

मुझे अब नींद की तलाश नहीं,  अब रातों को जागना अच्छा लगता है.  मुझे नहीं मालूम की वो मेरी किस्मत में है या नहीं, मगर खुदा से उसे मांगना अच्छा लगता है. जाने मुझे हक़ है या नहीं,  पर उसकी परवाह करना अच्छा लगता है.  उसे प्यार करना सही है या नहीं, पर इस अहसास को जीना अच्छा लगता है. कभी हम साथ होंगे या नहीं, पर ये ख्वाब देखना अच्छा लगता है. वो मेरा है या नहीं, पर उसे अपना कहना अच्छा लगता है. दिल को बहलाऊ बहुत पर मानता ही नहीं, शायद इसे भी उसके लिए धड़कना अच्छा लगता है.

बीते कुछ दिनों से उदास है जिंदगी।।

बीते कुछ दिनों से कुछ उदास है जिंदगी, कल तक थी उसके पास और आज फिर अपने पास है जिंदगी। वैसे तो उसके जाने का अफसोस भी कम नहीं, पर उसके लौट के ना आने से तार-तार है जिंदगी। इंतजार उस शख्स का कैसे ना होता, जिसके हर पल में अहसास था कि तुम ही हो जिंदगी। पर आज जब वो पलट कर अपने पास ना आया, तब कहीं मन ने एक सच जाना कि कुछ ऐसी ही होती है जिंदगी। उसे तेरा होना होता, तेरे पास आना होता तो आ चुका होता, जो ना आया तो समझ आया शायद इसी का नाम है जिंदगी।

एक सवाल : क्या सचमुच बचपन सुहाना हो चला है ?

कि यूं जो बात करें बीते पल की, देखते हैं कुछ-कुछ छुट सा गया है, वो बचपन जो खिलखिलाता था गलियों में, वो कहीं लुट सा गया है. वो मिटटी के खिलौने थे जिनसे अपना सच्चा घर बनता था, सुना है एक सदी से.....वो घर भी अब टूट गया है. मेरे हाथों में गिल्ली और डंडे होते थे, जेबों में कंचे छलकते थे, कंचे भी गुम हो गए हैं कहीं और गिल्ली डंडा भी अब टूट गया है.   कि यूं जो बात करें बीते पल की, देखते हैं कुछ-कुछ छुट गया है, वो बचपन जो खिलखिलाता था गलियों में, वो कहीं लुट गया है. अब हम कुछ-कुछ स्मार्ट हो चले हैं, बच्चे अब जल्दी बड़े होने लगे हैं, वो गलियों में नहीं खेलते, लेकिन हां वो कंप्यूटर पर खेलने लगे हैं. उन्हें हमारी तरह चोट भी नहीं लगती हैं पैरों और कोहनियों में, सुना है कुर्सी पर बैठ उनका बचपन अब सुहाना होने लगा है. बातें मिटटी के खेल से अब स्मार्टफोन और टीवी में सिमट रही है, मगर मन में एक सवाल...क्या सचमुच बचपन सुहाना हो चला है?

Is In Me

There is always a part of yours is in me, always a deep thought of yous is in me, all the breath of yours is in me, there is still a body where you live is in me, the smell where love comes is in me... #hiteshsongara

ये जिन्दगी है साहब

ये जिन्दगी है साहब ऐसे ही चलती रहेगी, यहाँ कभी छांव तो कभी धूप भी निकलती ही रहेगी! ये निर्भर आप पर हैं करता कि निकलना है या नहीं, जिन्दगी तो एक झरने की तरह बहती ही रहेगी! कही दिल को दर्द होगा तो कहीं सुकून भी मिलेगा, ये गर जख्म देगी तो उसपर मरहम मलती भी रहेगी! ये जिन्दगी है साहब ऐसे ही चलती रहेगी, यहाँ कभी छांव तो कभी धूप भी निकलती ही रहेगी!

तुम नहीं समझोगे..!!

कैसा लगता है जब तुम कहते हो कि "तुम बस रहने दो?" तुम्हे बताऊँ...खैर रहने दो क्योंकि तुम नहीं समझोगे.. तुम नहीं समझोगे कि क्यों हम बात नहीं कर पाते, तुम नहीं समझोगे कि आखिर क्यों हम मुलाकात नहीं कर पाते... तुमने बस अपनी ही बातें करनी होती हैं मुझसे, मुझे क्या कहना है कभी तो पूछ भी लो मुझसे... मैं भी अपनी बातें बताउंगी तुम्हे...उतने ही प्यार से..वैसे ही अहसास से... मैं चाहती हूं कि बैठूं तुम्हारे पास...अपने कांपते हाथों में लेकर तुम्हारा हाथ... मगर दिल सिसक सा जाता है ऐसे ही अचानक...अमूमन... मेरे जहन में आता है कि कह दूँ तुमसे...लेकिन "तुम नहीं समझोगे" (हितेश सोनगरा)

Impossible..!!

Job..!!

Mahaan Vyakti

Only I Can

एक कहानी-बड़ी पुरानी (4)

यार मेरे...दिलदार मेरे...चल आज अपनी कहानी लिखते हैं, कुछ मेरी मैं कहता हूं और चल कुछ तेरी जुबानी लिखते हैं. अभी कल ही की तो बात हैं जब पढ़ाई खत्म कर हम स्कूल से निकले थे, बाहर से काफी शरारती नजर आते थे, मगर अंदर से हम काफी भोले थे. याद है कॉलेज में हमने जब साथ कदम रखा था, कुछ नए यार बनाए थे और कुछ पुराने यारों को जोड़ रखा था. साथ क्लासरूम में पीछे की सीट पर वो गप्पे मारने का कॉम्पिटिशन चलता था, कभी मैं तुझसे हार जाता था तो कभी तू मुझे भी जीतता था. समय बीतता चला गया और कॉलेज को भी छोड़ देने का दिन आ गया, आगे सुनहरे सपने दिखे, मगर फिर भी चेहरे के सामने जैसे अँधेरा छा गया. फिर हम भी उसी भीड़ का एक हिस्सा बनने की तरफ चल निकले, नौकरी के चक्कर में खूब निकले मेरे अरमा, मगर फिर भी कम निकले.

कहीं गुम सी हो गई है बातें और वो 'चाय की गुमटी'

  ‘’अरे भाई! चल चाय पीते हैं’’ कहीं पीछे से एक आवाज सुनाई देती है. प्रवेश मुड़कर देखता है तो सचिन दरवाजे पर खड़ा हुआ है और उसकी तरफ ही नजरें किए खड़ा हुआ है. प्रवेश भी बड़ी सहजता से पूछता है “कहाँ चल रहे हैं?” सचिन का जवाब आता है “वहीँ, चाय की गुमटी पर” चाय की गुमटी कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ आपको चमचमाती हुई मेज मिलती है या फिर एकदम साफ़ कप में चाय दी जाती है. यह तो वह जगह हैं जहाँ एक छोटी सी गुमटी होती हैं. अमूमन दो या तीन लोगों के बैठने के लिए बांस के मुड्डों का इस्तमाल होता है बाकि लोग अपनी सुविधानुसार अपनी गाड़ी की सीट पर या वहीँ कोने में ईंटों पर टिकाई फर्श पर बैठ सकते हैं. हा बैठना थोड़ा दुखदाई जरुर होता है लेकिन आपको उसका अहसास नहीं होता. हमारी कहानी के दो पात्र भी कुछ ऐसे ही हैं जो यहाँ चाय की गुमटी पर केवल चाय पीने ही नहीं बल्कि अपनी बातें एकदूजे को बताने, दिनचर्चा को विस्तार से सुनाने और सबसे जरुरी देश के मुद्दों पर बात करने के लिए पहुँचते हैं. यहाँ मौजूद हर शख्स एकदूजे को नहीं जानता है लेकिन जैसे ही चाय का वो आधा धुला हुआ गिलास चाय के साथ हाथ में आता है, उसका वहां खड़े हर...

वो मोहब्बत ही तो थी

वो मोहब्बत ही तो थी,  जो दूर कोने में कड़ी हमपर हंस रही थी. और कह रही थी, बड़ा गुमान था न तुझे, ले चकनाचूर कर दिया मैंने उसे तेरी ही नजरों के सामने!!  

शायद...!!

तुम्हारे लिए मैं ताज ना बनवा पाऊं शायद, लेकिन घर बनाना मुझे आता है... मुझे नहीं आता कैसे बनाते है 56 भोग, पर चाय बनाना मुझे आता है.... हो सकता है महंगी कार में घुमने का सपना शायद सपना ही रह जाए तुम्हारा... लेकिन यकीन रखना मुझपर तुम्हे कभी पैदल ना चलने देना मुझे आता है.... जब गर्मी सताएगी तो शायद एसी की ठंडी हवा ना मिल पाएगी तुम्हे... लेकिन तुम्हे अपने प्यार की छाँव में हमेशा रखना मुझे आता है... हो सकता है हमारे सपनों का आशियाँ चमकते हुई दीवारों से न बना हो... पर जो भी हो उसे खुशियों से भरना और स्वर्ग से सुंदर बनाना मुझे आता है.... मैं वादा करता हूं जिन्दगी के हर मोड़ पर लड़ता भी रहूँगा तुमसे... लेकिन फिर तुम्हारे सामने काम पकड़कर उसी मासूमियत से तुम्हे मनाना भी मुझे आता है... बस मुझे नहीं आता तो तुम्हारे बिना रहना और सांसे लेते रहना... हाँ मुझे नहीं आता तुम्हारे बिना हर सुबह का सपना देखना... ये कहने में शर्म नहीं है आज मुझे कि नहीं आता मुझे... मुझे नहीं आता खुश रहना बिन तुम्हारे....नहीं आता

एक कहानी-बड़ी पुरानी (3)

वो जो पल होते हैं ना जब आप किसी के इंतजार में बैठे होते हैं, ये जानते हुए कि इस इंतजार का फल भी केवल कोरा इंतजार ही होगा....लेकिन फिर भी आप अपनी टूटी हुई एक उम्मीद के सहारे उस एक पल का इंतजार करना नहीं छोड़ते....किसी उपन्यास में तो नहीं लेकिन हाँ आम भाषा में ही इसे प्यार कहा गया है....कहीं आप भी तो नहीं कर बैठे यह छोटा सा इंतजार या फिर थोडा सा प्यार  ;-)   :D

एक परिंदा....

फिर आज...सोने की ना-कामयाब कोशिश करता एक परिंदा, ना चाहते हुए भी नींद को ख्वाबों में ढूंढता एक परिंदा... एक परिंदा जो कल कभी डाल-डाल कभी पात-पात घूमता फिर रहा था, आज ख़ामोशी में डूबा हुआ कहीं बाग़-बाग़ घूम रहा है... वो जो उसके बैठने के ठिकाने हुआ करते थे कभी, सुना हैं आज जमीं पर धराशायी हुए पड़े हैं कहीं... कुछ लोग आए थे साथ अपने आरी और कुछ औजार लिए, मन में लालच और आँखों में पैसों की घनघोर बौछार लिए... पेड़ काट गए, छाँव बांट गए और साथ ले गए अपने उनका बसेरा, साथ ले गये वो पंछियों का सुकून और कभी ना हो सकने वाला सवेरा...

एक कहानी-बड़ी पुरानी (2)

चल यार...फिर बैठें कहीं अपनों के साथ में,  फिर देखें खुद को बीते सपनों के साथ में.. फिर एकदूजे को झूठे वादों से चल बहलाते हैं, चल ना साथ...फिर खुली सड़क पर खुलकर मुस्कुराते हैं... फिर चल कहीं बेमतलब चलते-चलते रुक जाते हैं, किसी चाय वाले से भरी बरसात में चाय बनवाते हैं.. चल बारिश से बचने उस पेड़ के नीचे खड़े रहते हैं, उसके पत्तों से गिरती बूंदों में फिर साथ भीग जाते हैं.. (लिखने वाले साहब के लेखक तो नहीं, लेकिन हाँ आशिक बनने के पूरे स्कोप हैं..)

एक कहानी-बड़ी पुरानी...

बातें शुरू हुईं या कहानी कुछ कहा नहीं जा सकता...लेकिन तेरे-मेरे बीच एक अहसास तो जरुर शुरू हुआ ही था...मैंने भी कुछ कहा ही था और तूने भी कुछ सुना ही था...बातें बेमतलब की बेहिसाब होती रही..ना जाने कब सुबह और कब शाम होती रही... लिखने वाले साहब लेखक बनने की कगार पर हैं...  :D