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शायद...!!

तुम्हारे लिए मैं ताज ना बनवा पाऊं शायद, लेकिन घर बनाना मुझे आता है...
मुझे नहीं आता कैसे बनाते है 56 भोग, पर चाय बनाना मुझे आता है....

हो सकता है महंगी कार में घुमने का सपना शायद सपना ही रह जाए तुम्हारा...
लेकिन यकीन रखना मुझपर तुम्हे कभी पैदल ना चलने देना मुझे आता है....

जब गर्मी सताएगी तो शायद एसी की ठंडी हवा ना मिल पाएगी तुम्हे...
लेकिन तुम्हे अपने प्यार की छाँव में हमेशा रखना मुझे आता है...

हो सकता है हमारे सपनों का आशियाँ चमकते हुई दीवारों से न बना हो...
पर जो भी हो उसे खुशियों से भरना और स्वर्ग से सुंदर बनाना मुझे आता है....

मैं वादा करता हूं जिन्दगी के हर मोड़ पर लड़ता भी रहूँगा तुमसे...
लेकिन फिर तुम्हारे सामने काम पकड़कर उसी मासूमियत से तुम्हे मनाना भी मुझे आता है...

बस मुझे नहीं आता तो तुम्हारे बिना रहना और सांसे लेते रहना...
हाँ मुझे नहीं आता तुम्हारे बिना हर सुबह का सपना देखना...
ये कहने में शर्म नहीं है आज मुझे कि नहीं आता मुझे...
मुझे नहीं आता खुश रहना बिन तुम्हारे....नहीं आता

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तुम नहीं समझोगे..!!

कैसा लगता है जब तुम कहते हो कि "तुम बस रहने दो?" तुम्हे बताऊँ...खैर रहने दो क्योंकि तुम नहीं समझोगे.. तुम नहीं समझोगे कि क्यों हम बात नहीं कर पाते, तुम नहीं समझोगे कि आखिर क्यों हम मुलाकात नहीं कर पाते... तुमने बस अपनी ही बातें करनी होती हैं मुझसे, मुझे क्या कहना है कभी तो पूछ भी लो मुझसे... मैं भी अपनी बातें बताउंगी तुम्हे...उतने ही प्यार से..वैसे ही अहसास से... मैं चाहती हूं कि बैठूं तुम्हारे पास...अपने कांपते हाथों में लेकर तुम्हारा हाथ... मगर दिल सिसक सा जाता है ऐसे ही अचानक...अमूमन... मेरे जहन में आता है कि कह दूँ तुमसे...लेकिन "तुम नहीं समझोगे" (हितेश सोनगरा)

मैं शून्य पे सवार हूँ

जाकिर खान साहब की कविता : मैं शून्य पे सवार हूँ बेअदब सा मैं खुमार हूँ अब मुश्किलों से क्या डरूं मैं खुद कहर हज़ार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ उंच-नीच से परे मजाल आँख में भरे मैं लड़ रहा हूँ रात से मशाल हाथ में लिए न सूर्य मेरे साथ है तो क्या नयी ये बात है वो शाम होता ढल गया वो रात से था डर गया मैं जुगनुओं का यार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ भावनाएं मर चुकीं संवेदनाएं खत्म हैं अब दर्द से क्या डरूं ज़िन्दगी ही ज़ख्म है मैं बीच रह की मात हूँ बेजान-स्याह रात हूँ मैं काली का श्रृंगार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ हूँ राम का सा तेज मैं लंकापति सा ज्ञान हूँ किस की करूं आराधना सब से जो मैं महान हूँ ब्रह्माण्ड का मैं सार हूँ मैं जल-प्रवाह निहार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ