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तुम नहीं समझोगे..!!

कैसा लगता है जब तुम कहते हो कि "तुम बस रहने दो?"
तुम्हे बताऊँ...खैर रहने दो क्योंकि तुम नहीं समझोगे..

तुम नहीं समझोगे कि क्यों हम बात नहीं कर पाते,
तुम नहीं समझोगे कि आखिर क्यों हम मुलाकात नहीं कर पाते...

तुमने बस अपनी ही बातें करनी होती हैं मुझसे,
मुझे क्या कहना है कभी तो पूछ भी लो मुझसे...

मैं भी अपनी बातें बताउंगी तुम्हे...उतने ही प्यार से..वैसे ही अहसास से...
मैं चाहती हूं कि बैठूं तुम्हारे पास...अपने कांपते हाथों में लेकर तुम्हारा हाथ...

मगर दिल सिसक सा जाता है ऐसे ही अचानक...अमूमन...
मेरे जहन में आता है कि कह दूँ तुमसे...लेकिन "तुम नहीं समझोगे"

(हितेश सोनगरा)

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जाकिर खान साहब की कविता : मैं शून्य पे सवार हूँ बेअदब सा मैं खुमार हूँ अब मुश्किलों से क्या डरूं मैं खुद कहर हज़ार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ उंच-नीच से परे मजाल आँख में भरे मैं लड़ रहा हूँ रात से मशाल हाथ में लिए न सूर्य मेरे साथ है तो क्या नयी ये बात है वो शाम होता ढल गया वो रात से था डर गया मैं जुगनुओं का यार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ भावनाएं मर चुकीं संवेदनाएं खत्म हैं अब दर्द से क्या डरूं ज़िन्दगी ही ज़ख्म है मैं बीच रह की मात हूँ बेजान-स्याह रात हूँ मैं काली का श्रृंगार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ हूँ राम का सा तेज मैं लंकापति सा ज्ञान हूँ किस की करूं आराधना सब से जो मैं महान हूँ ब्रह्माण्ड का मैं सार हूँ मैं जल-प्रवाह निहार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ