Skip to main content

कहीं गुम सी हो गई है बातें और वो 'चाय की गुमटी'

 ‘’अरे भाई! चल चाय पीते हैं’’ कहीं पीछे से एक आवाज सुनाई देती है. प्रवेश मुड़कर देखता है तो सचिन दरवाजे पर खड़ा हुआ है और उसकी तरफ ही नजरें किए खड़ा हुआ है. प्रवेश भी बड़ी सहजता से पूछता है “कहाँ चल रहे हैं?” सचिन का जवाब आता है “वहीँ, चाय की गुमटी पर”

चाय की गुमटी कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ आपको चमचमाती हुई मेज मिलती है या फिर एकदम साफ़ कप में चाय दी जाती है. यह तो वह जगह हैं जहाँ एक छोटी सी गुमटी होती हैं. अमूमन दो या तीन लोगों के बैठने के लिए बांस के मुड्डों का इस्तमाल होता है बाकि लोग अपनी सुविधानुसार अपनी गाड़ी की सीट पर या वहीँ कोने में ईंटों पर टिकाई फर्श पर बैठ सकते हैं. हा बैठना थोड़ा दुखदाई जरुर होता है लेकिन आपको उसका अहसास नहीं होता.

हमारी कहानी के दो पात्र भी कुछ ऐसे ही हैं जो यहाँ चाय की गुमटी पर केवल चाय पीने ही नहीं बल्कि अपनी बातें एकदूजे को बताने, दिनचर्चा को विस्तार से सुनाने और सबसे जरुरी देश के मुद्दों पर बात करने के लिए पहुँचते हैं. यहाँ मौजूद हर शख्स एकदूजे को नहीं जानता है लेकिन जैसे ही चाय का वो आधा धुला हुआ गिलास चाय के साथ हाथ में आता है, उसका वहां खड़े हर शख्स से एक रिश्ता बन जाता है.

मगर कुछ वक्त से या यूँ कह लीजिए कि कुछ बीतें वर्षों से यह चाय की गुमटी कुछ सुनसान ही हो गई है. अपने ही आप में गुमनाम सी हो गई है. आज भी सचिन के सामने उस टूटे हुए मुडडे पर प्रवेश बैठता तो है लेकिन दिनचर्या नहीं सुना पाता. दोनों के बीच बात तो होती हैं पर होंठों से कोई आवाज़ नहीं निकलती. बातें भी वहीँ हैं और दिनचर्या भी और हां देश की सम्सयाएँ भी अभी कुछ-कुछ पहले जैसी ही हैं. मगर....फिर कमबख्त वह कौन है जो दोनों दोस्तों के बीच एक दिवार है.

शायद वह दिवार दोनों के हाथों में मौजूद है. अरे नहीं भाई आपके हाथ में मौजूद यह उपकरण किसी का क्या बिगड़ेगा. फिर??

क्या हम बदल गए हैं इस टेक्नोलॉजी के दौर में? शायद आपका भी जवाब यहाँ हां ही होगा!
हम आज टेक्नोलॉजी के बीच इतना घिर चुके हैं कि हमारे पास हर किसी के लिए वक्त तो है लेकिन किसी के लिए वक्त नहीं. पहले अक्सर दोस्तों परिवारों से घर के आंगन में ही मिलना हो जाता था, लेकिन अब मेल-मिलाप वीडियो कॉल्स तक सिमित हो चला है. दूर-दराज बैठे परिवार के सदस्यों से दिल का रिश्ता वैसा ही है लेकिन अब कनेक्शन करने के लिए मोबाइल नेटवर्क की जरुरत पड़ने लगी है.

बच्चे भी गर्मी की छुट्टियों में नाना-नानी के घर और गाँव नहीं बल्कि प्ले स्कूल जाने लगे हैं. अख़बारों से रोज सूरज की पहली किरण के साथ मिलने वाली खबरें अब स्मार्टफोन पर अख़बार से पहले मिलने लगीं है. त्योहारों की खुशियाँ साथियों के घर जाकर नहीं बल्कि परिवार के साथ विदेश जाने में मिलने लगी हैं.

ऐसे में वो पीपल के पेड़ के नीचे रखी चाय की गुमटी कहीं दबी सी रह गई है. सब पहले जैसा ही है...लोग भी वही हैं और बातें भी...मगर चीजे मोबाइल तक सीमित रह गई हैं. अब प्रवेश को सचिन की "चल चाय की गुमटी से आते हैं" वाली आवाज़ आना बंद हो चली है. और बातें भी कम होकर "ओके" और "हम्म" पर आकर ठहरने लगी हैं. और इन सब बातों के बीच चाय की दुकान पर काम करते उस मटमैले कपडे पहने हुए छोटू की आवाज़ आ जाती है "भैया चाय ठंडी हो रही है."

Comments

Popular posts from this blog

तुम नहीं समझोगे..!!

कैसा लगता है जब तुम कहते हो कि "तुम बस रहने दो?" तुम्हे बताऊँ...खैर रहने दो क्योंकि तुम नहीं समझोगे.. तुम नहीं समझोगे कि क्यों हम बात नहीं कर पाते, तुम नहीं समझोगे कि आखिर क्यों हम मुलाकात नहीं कर पाते... तुमने बस अपनी ही बातें करनी होती हैं मुझसे, मुझे क्या कहना है कभी तो पूछ भी लो मुझसे... मैं भी अपनी बातें बताउंगी तुम्हे...उतने ही प्यार से..वैसे ही अहसास से... मैं चाहती हूं कि बैठूं तुम्हारे पास...अपने कांपते हाथों में लेकर तुम्हारा हाथ... मगर दिल सिसक सा जाता है ऐसे ही अचानक...अमूमन... मेरे जहन में आता है कि कह दूँ तुमसे...लेकिन "तुम नहीं समझोगे" (हितेश सोनगरा)

मैं शून्य पे सवार हूँ

जाकिर खान साहब की कविता : मैं शून्य पे सवार हूँ बेअदब सा मैं खुमार हूँ अब मुश्किलों से क्या डरूं मैं खुद कहर हज़ार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ उंच-नीच से परे मजाल आँख में भरे मैं लड़ रहा हूँ रात से मशाल हाथ में लिए न सूर्य मेरे साथ है तो क्या नयी ये बात है वो शाम होता ढल गया वो रात से था डर गया मैं जुगनुओं का यार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ भावनाएं मर चुकीं संवेदनाएं खत्म हैं अब दर्द से क्या डरूं ज़िन्दगी ही ज़ख्म है मैं बीच रह की मात हूँ बेजान-स्याह रात हूँ मैं काली का श्रृंगार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ हूँ राम का सा तेज मैं लंकापति सा ज्ञान हूँ किस की करूं आराधना सब से जो मैं महान हूँ ब्रह्माण्ड का मैं सार हूँ मैं जल-प्रवाह निहार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ