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एक कहानी-बड़ी पुरानी (4)

यार मेरे...दिलदार मेरे...चल आज अपनी कहानी लिखते हैं,
कुछ मेरी मैं कहता हूं और चल कुछ तेरी जुबानी लिखते हैं.

अभी कल ही की तो बात हैं जब पढ़ाई खत्म कर हम स्कूल से निकले थे,
बाहर से काफी शरारती नजर आते थे, मगर अंदर से हम काफी भोले थे.

याद है कॉलेज में हमने जब साथ कदम रखा था,
कुछ नए यार बनाए थे और कुछ पुराने यारों को जोड़ रखा था.

साथ क्लासरूम में पीछे की सीट पर वो गप्पे मारने का कॉम्पिटिशन चलता था,
कभी मैं तुझसे हार जाता था तो कभी तू मुझे भी जीतता था.

समय बीतता चला गया और कॉलेज को भी छोड़ देने का दिन आ गया,
आगे सुनहरे सपने दिखे, मगर फिर भी चेहरे के सामने जैसे अँधेरा छा गया.

फिर हम भी उसी भीड़ का एक हिस्सा बनने की तरफ चल निकले,
नौकरी के चक्कर में खूब निकले मेरे अरमा, मगर फिर भी कम निकले.

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