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Showing posts from 2017

मैं शून्य पे सवार हूँ

जाकिर खान साहब की कविता : मैं शून्य पे सवार हूँ बेअदब सा मैं खुमार हूँ अब मुश्किलों से क्या डरूं मैं खुद कहर हज़ार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ उंच-नीच से परे मजाल आँख में भरे मैं लड़ रहा हूँ रात से मशाल हाथ में लिए न सूर्य मेरे साथ है तो क्या नयी ये बात है वो शाम होता ढल गया वो रात से था डर गया मैं जुगनुओं का यार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ भावनाएं मर चुकीं संवेदनाएं खत्म हैं अब दर्द से क्या डरूं ज़िन्दगी ही ज़ख्म है मैं बीच रह की मात हूँ बेजान-स्याह रात हूँ मैं काली का श्रृंगार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ हूँ राम का सा तेज मैं लंकापति सा ज्ञान हूँ किस की करूं आराधना सब से जो मैं महान हूँ ब्रह्माण्ड का मैं सार हूँ मैं जल-प्रवाह निहार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ

Tumhe yaad to aati hogi naa....

Jab kali rat me meri kmi mahsus hoti hogi, Tab tumhe meri yaad to aati hogi naa!! Jab apne hontho par mera naam ata hoga, Tab tumhe meri yaad to aati hogi naa!! Tumhe meri yaad to aati hogi naa, Jab koi tumhe khulkar hnsata hoga... Jab kisi couple ko bike par jate hue dekhti hogi, Tab tumhe meri yaad to aati hogi naa!! Wo mera tumhare kndhe par sir rkh dena, Or tumhara mere sine par so jana... Jab bhi ye pal tanhai me satate honge, Tab tumhe meri yaad to aati hogi naa!! Meri nangi ungliya jab tumhari pith par firati thi, Hontho se honth ko bde pyar se milati thi... Wo siskiyan jo nind ko udati thi... Unhe yaad karke Tumhe meri yaad to aati hogi naa!! Pyar kya hai ye tumne sikhaya hai, Is sunder ahsas Ko mujhme bithaya hai.. Kasam hai tumhe meri sach kahna jaan, Aaj bhi akele me tumhari aah to nikal jati hogi naa.... Tum bhi mujhe bahut pyar karti ho naa, Beta tumhe meri yaad to aati hogi naa!!

शिद्दत

मुझे इतनी शिद्दत से मोहब्बत सिखाने वाले, एक बार यह भी सिखा देता कि इसे भुलाते कैसे हैं?

आज हम साथ नहीं हैं क्या ??

तो क्या हुआ जो हम साथ ना हो सके, हमारा सपना पूरा ना हो सका, क्या हुआ जो तुम मेरी ना हो सकी और मैं तुम्हारा ना हो सका.. कल तुम्हारी शादी भी हो जाएगी और तुम नए घर जाओगे किसी की अमानत बनकर, उसका क्या कसूर है, जो तुम उसे मिलोगी उसकी जिन्दगी में एक खुबसूरत क़यामत बनकर.. एक बात ध्यान रहे...उसके साथ तुम खुश रहना, जो बाते मुझसे कहने में तुम हिचकिचाई, वे सारी बाते तुम उससे कहना... अब मैं एक किनारा हो गया हूँ और वो है समुन्दर तुम्हारा, अब से तुम उसकी धार में ही बहना... मुझे अब तुमसे रत्ती भर का भी गिला नहीं है, क्योंकि मैं जानता हूँ कि तुमने अपना प्यार पूरी शिद्दत से निभाया है, हम एक ना हो सके ये किस्मत का कसूर है, तुमने तो मिलने के लिए अपना पूरा जोर लगाया है.. अब मेरी फ़िक्र ना करना तुम, मैं तुम्हे गमो के समुंदर में भी हमेशा मुस्कुराता मिलूँगा, जीतने भी गम है हमारे हरे भरे, मैं मुस्कुराते हुए उन्हें ख़ुशी से सिलूँगा... मुझे बस चाहिए तुमसे एक ही वादा, कि तुम हमेशा खुश और मुस्कुराते रहना, अपने हर गम को भुलाके, अपने नए साजन के साथ ख़ुशी से जीना... वो सारे ख्...

क्या लिखू...??

क्या लिखू...?? क्या लिखू उसके बारे में कि वो चाहत है मेरी, वो इबादत है मेरी.. वही तो एक है जो दुआ में भी शामिल है और साथ ही इनायत है मेरी.. क्या लिखू कि उसके होने से एक अलग सा अहसास होता है... और वो पास न हो तो जैसे हर एक लम्हा उदास होता है.. वो हमेशा कहती है मुझसे कि तुम नहीं करते हो मेरी परवाह, तुम्हे नहीं है मुझसे प्यार..!! अब क्या लिखू उसको लेकर कि वही है एक जिसे पाने के लिए में जिए जा रहा हूँ, इश्क़ में इस जुदाई के जहर को पिए जा रहा हूँ.. उसके ना होने के बारे में सोचूँ भी तो रूह काँप जाती है.. एक दर सा लगता है इस दिल में और पलके भीग जाती है.. उसके होने के अहसास भर से इस चेहरे पर मुस्कान बिखते रहती है.. और वो कहती है कि तुम्हे मेरी परवाह नहीं रहती है.. क्या लिखू कि वो जान है मेरी, इस सीने में उसके ही नाम की धड़कन बसी है.. पगली है वो ये भी नहीं जानती है कि कितने खूबसूरत है वो पल जिनमे वो मेरे साथ हँसी है.. उसकी एक मुस्कान के लिए तो मैं इस दुनिया से लड़ जाने का हौसला रखता हूँ.. प्यार बहुत करता हूँ उससे लेकिन ना जाने क्यों हमेशा इसे जताने से डरता हूँ.. आँखों में हमेशा रहता है उसका ही इन...

उसे देखता हुँ तो लगता है बस देखता ही रहूँ

उसे देखता हुँ तो लगता है बस देखता ही रहूँ, कुछ तो अजीब बात उसके चेहरे में आज भी है...!! पास जाने से आज भी वैसे ही घबराता है दिल, कि जैसे लगता है पहली मुलाकात का वो खुमार आज भी है...!! उसके होने से ये अहसास होता है कि कोई अपना है, उसकी बाहों मे बीत जाए ये जिन्द्गी बस एक यही छोटा सा सपना है..!! उसके वादो का, उसकी बातों का, उसकी यादो का दिदार आज भी है, उसके चेहरे पर आज भी है वही नूर, और मेरी आंखो मे वो इन्तेजार आज भी है..!!

क्या करू वो है ही इतनी अच्छी सी...

सीधी साधी है वो एक बच्ची सी, क्या करू वो है ही इतनी अच्छी सी, मुझे कहती है I Love You, और उसकी हर बात मुझे लगती है सच्ची सी... क्या करू वो है ही इतनी अच्छी सी.... उसके बालो को देखकर लहराना अच्छा लगता है तो आँखों में डूब जाने का मन होता है, होंठो की गुलाबी पंखुड़ियों को चूमकर गालो को सहलाने का मन होता है... ऊँगली को गाल से कान के पीछे और फिर गले तक लाऊ तो हो जाती है सहमी सी, सिमट जाती है मुझमे और थाम लेता हूँ मैं उसे, क्या करूँ वो है ही इतनी अच्छी सी... कमर के साथ ऊँगली का खेल, कभी खत्म नहीं होता उसके साथ, और अचानक ही पीठ पर पहुँच जाते है अपना नाम कुरेदते हुए हाथ.... फिर वह लगाती है अंदाजा और उसके मुंह से हल्की सिसकियों में सुनता हूँ अपना नाम, उसकी जुबान पर अपने नाम को सुनना, फीलिंग्स है बडी अच्छी सी... और फिर वही कहूंगा, क्या करू वो है ही इतनी अच्छी सी... थोड़ी अच्छी सी, थोड़ी बच्ची सी और थोड़ी कच्ची सी, लेकिन जब बाँहों में सिमट जाती है तो लगती है सबसे सच्ची सी.... क्या करू वो है ही इतनी अच्छी सी...

मैं जिन्दगी के हर मोड़ पर खड़ा रहूँगा तेरे साथ

मैं जिन्दगी के हर मोड़ पर खड़ा रहूँगा तेरे साथ, तू एक बार चलने की हिम्मत तो कर..!! मिलेगी मंजिल भी तुझे एक दिन मेरे यार, तू बस एक बार फिर उसे पाने की कोशिश तो कर..!!

गांव शहर नहीं, किसान का घर जल रहा है

गांव शहर नहीं, किसान का घर जल रहा है........ ऊँची उठती लपटों को देखकर, लोगो के आंदोलनकारी शोर को सुनकर . किसी ने कहा गांव जल रहा है, किसी ने कहा शहर जल रहा है . पर जब नजदीक जाकर, मन की आँखों से देखा तो पता चला . न गांव जल रहा है न शहर जल रहा है, वहा किसी गरीब का घर जल रहा है . ऐसी लपटों में की वह बुझा नहीं सकता, चाहकर भी . वह बैठा है घर के किसी कोने में हारकर ही . उसके बच्चे भूख से तिलमिला रहे थे, खाने को गिड़ गिड़ा रहे थे. पर वह उनके लिए कुछ नहीं कर सकता था, उसकी दुनिया बेहाल थी . उसकी मजदूरी बंद पड़ी थी, क्योकि आज किसानो की हड़ताल थी . उसका घर चलता है सिर्फ, एक दिन की कमाई से . उसकी बूढी माँ जिन्दा है, दो घूट दवाई से . पर अब बंद हो गयी है, उसकी हर रोज की कमाई . कैसे लाएगा वह, अपनी माँ की दवाई. शायद वह अपनी बूढी गाय का दूध बेचकर, घर चलाता है . छोटे से खेत में सब्जी उगाकर, परिवार की भूख मिटाता है . हर रोज उसका गुजारा, बस यही तो था. क्योकि वह गरीब, एक किसान ही तो था . किन्तु आज उसकी सब्जी को फेंक दी गयी, दूध को सड़को पर बहा दिया गया. उसे दूध और सब्जी, नहीं बेचने को कहा गय...

वो किसान कैसे यह सब कर सकता है?

जो #किसान खेत में टिटहरी के अण्डे नजर आने पर उतनी जगह की जोत छोड़ देता है वो यात्रियों से भरी बस के काँच कैसे फोड़ देता है ? जो किसान खड़ी फसल में चिड़िया के अंडे/चूजे देख उतनी फसल नहीं काटता है वो किसी की सम्पत्ति कैसे लूट सकता है ? जो किसान पिंडाड़े में लगी आग में कूदकर बिल्ली के बच्चे बचा लेता है वो किसी के घर में आग कैसे लगा देता है ? जो किसान दूध की एक बूंद भी जमीन पर गिर जाने से उसे पोंछकर माथे पर लगा लेता है वो उस अमृत को सड़कों पर कैसे बहा देता है ? जो किसान गाड़ी का हॉर्न बजने पर सड़क छोड़ खड़ा हो जाता है वो कैसे किसी का रास्ता रोक सकता है ? जो किसान चींटी को अंडा ले जाते चिड़िया को धूल नहाते देख बता सकता है कि कब पानी आएगा वो कैसे किसी के बहकावे में आयेगा ? ये दुखद घड़ी क्यों आई कुछ तो चूक हुई है कुछ पुरुस्कार में फूल गए नदी से संवाद करने वाले किसानों से #संवाद करना भूल गए जो किसान अपनी फसल की रखवाली के लिए खुले आसमान के नीचे आंधी तूफान हिंसक जानवर से नहीं डरता वो बन्दूक की गोली से नहीं मीठी बोली से मानेगा एक बार उसके अन्दर का दर...

मकर संक्रांति स्पेशल

आसमान का मौसम बदला बिखर गई चहुँओर पतंग। इंद्रधनुष जैसी सतरंगी नील गगन की मोर पतंग।। मुक्त भाव से उड़ती ऊपर लगती है चितचोर पतंग। बाग तोड़कर, नील गगन में करती है घुड़दौड़ पतंग।। पटियल, मंगियल और तिरंगा चप, लट्‍ठा, त्रिकोण पतंग। दुबली-पतली सी काया पर लेती सबसे होड़ पतंग।। कटी डोर, उड़ चली गगन में बंधन सारे तोड़ पतंग। लहराती-बलखाती जाती कहाँ न जाने छोर पतंग।।  

गहरी बात..!!

बेजुबान पत्थर पे लदे है करोडो के गहने मंदिरो में। उसी दहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हे हाथो को देखा है।। सजे थे छप्पन भोग और मेवे मूरत के आगे। बाहर एक फ़कीर को भूख से तड़प के मरते देखा है।। लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार। पर बाहर एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है।। वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में हॉल के लिए। घर में उसको 500 रूपये के लिए काम वाली बाई को बदलते देखा है।। सुना है चढ़ा था सलीब पे कोई दुनिया का दर्द मिटाने को। आज चर्च में बेटे की मार से बिलखते माँ बाप को देखा है।। जलाती रही जो अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात पुजारन। आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है।। जिसने न दी माँ बाप को भर पेट रोटी कभी जीते जी। आज लगाते उसको भंडारे मरने के बाद देखा है।। दे के समाज की दुहाई ब्याह दिया था  जिस बेटी को जबरन बाप ने। आज पीटते उसी शौहर के हाथो सरे राह देखा है।। मारा गया वो पंडित बे मौत सड़क दुर्घटना में यारो। जिसे खुद को काल, सर्प, तारे और हाथ की लकीरो का माहिर लिखते देखा है।। जिसे घर की एकता की देता था जमाना कभी मिसाल दोस्तों। आज उसी ...

हरिवंशराय बच्चन की एक सुंदर कविता...!!

खवाहिश  नही  मुझे  मशहूर  होने  की। आप  मुझे  पहचानते  हो  बस  इतना  ही  काफी  है।  अच्छे  ने  अच्छा  और  बुरे  ने  बुरा  जाना  मुझे। क्यों  कि  जिसकी  जितनी  जरुरत  थी  उसने  उतना  ही  पहचाना  मुझे। ज़िन्दगी  का  फ़लसफ़ा  भी   कितना  अजीब  है,  शामें  कटती  नहीं,  और  साल  गुज़रते  चले  जा  रहे  हैं....!! एक  अजीब  सी  दौड़  है  ये  ज़िन्दगी,  जीत  जाओ  तो  कई  अपने  पीछे  छूट  जाते  हैं, और  हार  जाओ  तो  अपने  ही  पीछे  छोड़  जाते  हैं। बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर... क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है.. मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा, चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना।। ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब ...

तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है, और तूँ मेरे गांव को गँवार कहता है..!!

तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है, और तूँ मेरे गांव को गँवार कहता है। ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है, तूँ बच्ची को भी हुस्न ए बहार कहता है। थक गया है हर शख़्स काम करते करते, तूँ इसे अमीरी का बाज़ार कहता है। गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास, तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है। मौन होकर फोन पर सारे रिश्ते निभाए जा रहे हैं, तूँ इस मशीनी दौर को परिवार कहता है। वो मिलने आते थे कलेजा साथ लाते थे, तूँ दस्तूर निभाने को रिस्तेदार कहता है। बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायते, अंधी भ्रस्ट दलीलों को दरबार कहता है। अब बच्चे तो बड़ों का अदब भूल बैठे हैं, तूँ इसे नये दौर का संस्कार कहता है।

वर्ष 2017 के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्वपूर्ण दिवस

1. लुईस ब्रेल दिवस – 4 जनवरी 2. विश्व हास्य दिवस – 10 जनवरी 3. राष्ट्रिय युवा दिवस – 12 जनवरी 4. थल सेना दिवस – 15 जनवरी 5. कुष्ठ निवारण दिवस – 30 जनवरी 6. भारत पर्यटन दिवस – 25 जनवरी 7. गणतंत्र दिवस – 26 जनवरी 8. अंतर्राष्ट्रीय सीमा शुल्क एवं उत्पाद दिवस – 26 जनवरी 9. सर्वोदय दिवस – 30 जनवरी 10. शहीद दिवस – 30 जनवरी 11. विश्व कैंसर दिवस – 4 जनवरी 12. गुलाब दिवस – 12 फरवरी 13. वेलेंटाइन दिवस – 14 फरवरी 14. अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस – 21 फरवरी 15. केन्द्रीय उत्पाद शुल्क दिवस – 24 फरवरी 16. राष्ट्रिय विज्ञानं दिवस – 28 फरवरी 17. राष्ट्रिय सुरक्षा दिवस – 4 मार्च 18. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस – 8 मार्च 19. के०औ०सु० बल की स्थापना दिवस – 12 मार्च 20. विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस – 15 मार्च 21. आयुध निर्माण दिवस – 18 मार्च 22. विश्व वानिकी दिवस – 21 मार्च 23. विश्व जल दिवस – 22 मार्च 24. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के शहीद दिवस – 23 दिवस 25. विश्व ...

यकीन मानिए ये 35 लाइनें छू लेंगी आपके दिल को

1. क़ाबिल लोग न तो किसी को दबाते हैं और न ही किसी से दबते हैं। 2. ज़माना भी अजीब हैं, नाकामयाब लोगो का मज़ाक उड़ाता हैं और कामयाब लोगो से जलता हैं । 3. कैसी विडंबना हैं ! कुछ लोग जीते-जी मर जाते हैं, और कुछ लोग मर कर भी अमर हो जाते हैं ।  4. इज्जत किसी आदमी की नही जरूरत की होती हैं. जरूरत खत्म तो इज्जत खत्म । 5. सच्चा चाहने वाला आपसे प्रत्येक तरह की बात करेगा. आपसे हर मसले पर बात करेगा लेकिन  धोखा देने वाला सिर्फ प्यार भरी बात करेगा। 6. हर किसी को दिल में उतनी ही जगह दो जितनी वो देता हैं.. वरना या तो खुद रोओगे, या वो तुम्हें रूलाऐगा । 7. खुश रहो लेकिन कभी संतुष्ट मत रहो । 8. अगर जिंदगी में सफल होना हैं तो पैसों को हमेशा जेब में रखना, दिमाग में नही । 9. इंसान अपनी कमाई के हिसाब से नही,अपनी जरूरत के हिसाब से गरीब होता हैं । 10. जब तक तुम्हारें पास पैसा हैं, दुनिया पूछेगी भाई तू कैसा हैं । 11. हर मित्रता के पीछे कोई न कोई स्वार्थ छिपा होता हैं ऐसी कोई भी मित्रता नही जिसके पीछे स्वार्थ न छिपा हो । 12. दुनिया में सबसे ज्यादा सपने तोड़े हैं इस बात ने,कि लोग क...

जाने क्यूं अब शर्म से, चेहरे गुलाब नही होते

"जाने क्यूं अब शर्म से,  चेहरे गुलाब नही होते। जाने क्यूं अब मस्त मौला मिजाज नही होते। पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें। जाने क्यूं अब चेहरे,  खुली किताब नही होते। सुना है बिन कहे  दिल की बात  समझ लेते थे। गले लगते ही दोस्त हालात  समझ लेते थे। तब ना फेस बुक  ना स्मार्ट मोबाइल था ना फेसबुक ना ट्विटर अकाउंट था एक चिट्टी से ही दिलों के जज्बात  समझ लेते थे। सोचता हूं हम कहां से कहां आ गये, प्रेक्टीकली सोचते सोचते भावनाओं को खा गये। अब भाई भाई से समस्या का समाधान  कहां पूछता है अब बेटा बाप से उलझनों का निदान  कहां पूछता है बेटी नही पूछती मां से गृहस्थी के सलीके अब कौन गुरु के  चरणों में बैठकर ज्ञान की परिभाषा सीखे। परियों की बातें अब किसे भाती है अपनो की याद अब किसे रुलाती है अब कौन  गरीब को सखा बताता है अब कहां  कृष्ण सुदामा को गले लगाता है जिन्दगी मे हम प्रेक्टिकल हो गये है मशीन बन गये है सब इंसान जाने कहां खो गये है! इंसान जाने कहां खो गये है....!