गांव शहर नहीं, किसान का घर जल रहा है........
ऊँची उठती लपटों को देखकर, लोगो के आंदोलनकारी शोर को सुनकर .
किसी ने कहा गांव जल रहा है, किसी ने कहा शहर जल रहा है .
पर जब नजदीक जाकर, मन की आँखों से देखा तो पता चला .
न गांव जल रहा है न शहर जल रहा है, वहा किसी गरीब का घर जल रहा है .
ऐसी लपटों में की वह बुझा नहीं सकता, चाहकर भी .
वह बैठा है घर के किसी कोने में हारकर ही .
उसके बच्चे भूख से तिलमिला रहे थे, खाने को गिड़ गिड़ा रहे थे.
पर वह उनके लिए कुछ नहीं कर सकता था, उसकी दुनिया बेहाल थी .
उसकी मजदूरी बंद पड़ी थी, क्योकि आज किसानो की हड़ताल थी .
उसका घर चलता है सिर्फ, एक दिन की कमाई से .
उसकी बूढी माँ जिन्दा है, दो घूट दवाई से .
पर अब बंद हो गयी है, उसकी हर रोज की कमाई .
कैसे लाएगा वह, अपनी माँ की दवाई.
शायद वह अपनी बूढी गाय का दूध बेचकर, घर चलाता है .
छोटे से खेत में सब्जी उगाकर, परिवार की भूख मिटाता है .
हर रोज उसका गुजारा, बस यही तो था.
क्योकि वह गरीब, एक किसान ही तो था .
किन्तु आज उसकी सब्जी को फेंक दी गयी, दूध को सड़को पर बहा दिया गया.
उसे दूध और सब्जी, नहीं बेचने को कहा गया.
वह एक तरफ खड़ा होकर अपने दूध को बहते देख रहा था .
कोई चिल्ला चिल्ला कर उसकी सब्जी को फेक रहा था .
पर उसके मन में एक ही सवाल था, वह आज अपने बचो का पेट भरेगा कैसे .
कहा से खरीदेगा राशन, कहा से आएंगे अब पैसे .
क्योकि उसका घर रोज की मेहनत से चलता था .
उसी से उसका और परिवार का पेट पलटा था .
पर आज उसने गाय के अमृत को, सड़कों पर बहते देखा है .
अपने ही लोगो के कारण, बच्चो को भूखा मरते देखा है .
वह दिन हीन गरीब किसान, किसके भरोसे था .
बैठ अपने घर में वह, किस्मत को कोसे था .
तब ही कही से आवाज आयी, भागो .
गांव जल रहा है, शहर जल रहा है .
बेवजह गोली खा कर, धरती पुत्र मर रहा है .
अन्नदाता कहे जाने वाला, किसी की भूख का दरकार बन रहा है .
रोजी रोटी छीनकर, वह सरकार बन रहा है .
बसें जला रहा है, मंडियों में आग लगा रहा है .
सड़के जाम करके, अपना अधिकार बता रहा है .
पर आज एक गरीब किसान, पूछ रहा है तुमसे बस एक ही सवाल .
बता मेरे देश के अन्नदाता किसान .
क्या दूध को सड़कों पर बहाना, सब्जियों को फेंकना ठीक है ?
क्या बसें जलाना, आग लगाना ठीक है ?
किसी गरीब का फल का ठेला उठाकर, फेंक देना ठीक है ?
बाजारों को बन्द कर, सड़के जाम करना ठीक है ?
माना की अधिकार की लड़ाई है,पर इस तरह लड़ना ठीक है ?
हक़ से लड़ो पर बंद करो, इस हिंसा के अवतार को .
रोशन करो फिर से किसान तुम, बंद पड़े बाजार को .
आज कह रहे हो भागो शहर जल रहा है, गांव जल रहा है .
पर सच पूछो तो, मेरा दिल जल रहा है .
और ऐसा ही रहा तो एक दिन, तुम्हारा दिल भी जलेगा.
और फिर तुम कह भी नहीं सकोगे भागो, शहर जल रहा है गांव जल रहा है .
किसान का बेटा- कवि बलराम सिंह राजपूत
ऊँची उठती लपटों को देखकर, लोगो के आंदोलनकारी शोर को सुनकर .
किसी ने कहा गांव जल रहा है, किसी ने कहा शहर जल रहा है .
पर जब नजदीक जाकर, मन की आँखों से देखा तो पता चला .
न गांव जल रहा है न शहर जल रहा है, वहा किसी गरीब का घर जल रहा है .
ऐसी लपटों में की वह बुझा नहीं सकता, चाहकर भी .
वह बैठा है घर के किसी कोने में हारकर ही .
उसके बच्चे भूख से तिलमिला रहे थे, खाने को गिड़ गिड़ा रहे थे.
पर वह उनके लिए कुछ नहीं कर सकता था, उसकी दुनिया बेहाल थी .
उसकी मजदूरी बंद पड़ी थी, क्योकि आज किसानो की हड़ताल थी .
उसका घर चलता है सिर्फ, एक दिन की कमाई से .
उसकी बूढी माँ जिन्दा है, दो घूट दवाई से .
पर अब बंद हो गयी है, उसकी हर रोज की कमाई .
कैसे लाएगा वह, अपनी माँ की दवाई.
शायद वह अपनी बूढी गाय का दूध बेचकर, घर चलाता है .
छोटे से खेत में सब्जी उगाकर, परिवार की भूख मिटाता है .
हर रोज उसका गुजारा, बस यही तो था.
क्योकि वह गरीब, एक किसान ही तो था .
किन्तु आज उसकी सब्जी को फेंक दी गयी, दूध को सड़को पर बहा दिया गया.
उसे दूध और सब्जी, नहीं बेचने को कहा गया.
वह एक तरफ खड़ा होकर अपने दूध को बहते देख रहा था .
कोई चिल्ला चिल्ला कर उसकी सब्जी को फेक रहा था .
पर उसके मन में एक ही सवाल था, वह आज अपने बचो का पेट भरेगा कैसे .
कहा से खरीदेगा राशन, कहा से आएंगे अब पैसे .
क्योकि उसका घर रोज की मेहनत से चलता था .
उसी से उसका और परिवार का पेट पलटा था .
पर आज उसने गाय के अमृत को, सड़कों पर बहते देखा है .
अपने ही लोगो के कारण, बच्चो को भूखा मरते देखा है .
वह दिन हीन गरीब किसान, किसके भरोसे था .
बैठ अपने घर में वह, किस्मत को कोसे था .
तब ही कही से आवाज आयी, भागो .
गांव जल रहा है, शहर जल रहा है .
बेवजह गोली खा कर, धरती पुत्र मर रहा है .
अन्नदाता कहे जाने वाला, किसी की भूख का दरकार बन रहा है .
रोजी रोटी छीनकर, वह सरकार बन रहा है .
बसें जला रहा है, मंडियों में आग लगा रहा है .
सड़के जाम करके, अपना अधिकार बता रहा है .
पर आज एक गरीब किसान, पूछ रहा है तुमसे बस एक ही सवाल .
बता मेरे देश के अन्नदाता किसान .
क्या दूध को सड़कों पर बहाना, सब्जियों को फेंकना ठीक है ?
क्या बसें जलाना, आग लगाना ठीक है ?
किसी गरीब का फल का ठेला उठाकर, फेंक देना ठीक है ?
बाजारों को बन्द कर, सड़के जाम करना ठीक है ?
माना की अधिकार की लड़ाई है,पर इस तरह लड़ना ठीक है ?
हक़ से लड़ो पर बंद करो, इस हिंसा के अवतार को .
रोशन करो फिर से किसान तुम, बंद पड़े बाजार को .
आज कह रहे हो भागो शहर जल रहा है, गांव जल रहा है .
पर सच पूछो तो, मेरा दिल जल रहा है .
और ऐसा ही रहा तो एक दिन, तुम्हारा दिल भी जलेगा.
और फिर तुम कह भी नहीं सकोगे भागो, शहर जल रहा है गांव जल रहा है .
किसान का बेटा- कवि बलराम सिंह राजपूत
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