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क्या लिखू...??

क्या लिखू...??

क्या लिखू उसके बारे में कि वो चाहत है मेरी, वो इबादत है मेरी..
वही तो एक है जो दुआ में भी शामिल है और साथ ही इनायत है मेरी..

क्या लिखू कि उसके होने से एक अलग सा अहसास होता है...
और वो पास न हो तो जैसे हर एक लम्हा उदास होता है..

वो हमेशा कहती है मुझसे कि तुम नहीं करते हो मेरी परवाह, तुम्हे नहीं है मुझसे प्यार..!!

अब क्या लिखू उसको लेकर कि वही है एक जिसे पाने के लिए में जिए जा रहा हूँ,
इश्क़ में इस जुदाई के जहर को पिए जा रहा हूँ..

उसके ना होने के बारे में सोचूँ भी तो रूह काँप जाती है..
एक दर सा लगता है इस दिल में और पलके भीग जाती है..

उसके होने के अहसास भर से इस चेहरे पर मुस्कान बिखते रहती है..
और वो कहती है कि तुम्हे मेरी परवाह नहीं रहती है..

क्या लिखू कि वो जान है मेरी, इस सीने में उसके ही नाम की धड़कन बसी है..
पगली है वो ये भी नहीं जानती है कि कितने खूबसूरत है वो पल जिनमे वो मेरे साथ हँसी है..

उसकी एक मुस्कान के लिए तो मैं इस दुनिया से लड़ जाने का हौसला रखता हूँ..
प्यार बहुत करता हूँ उससे लेकिन ना जाने क्यों हमेशा इसे जताने से डरता हूँ..

आँखों में हमेशा रहता है उसका ही इन्तेजार और चेहरे पर हमेशा ही उसके लिए एक हँसी रहती है..
और वो पगली मुझसे अब भी कहती है कि तुम्हे तो मेरी फ़िक्र ही नहीं रहती है..

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तुम नहीं समझोगे..!!

कैसा लगता है जब तुम कहते हो कि "तुम बस रहने दो?" तुम्हे बताऊँ...खैर रहने दो क्योंकि तुम नहीं समझोगे.. तुम नहीं समझोगे कि क्यों हम बात नहीं कर पाते, तुम नहीं समझोगे कि आखिर क्यों हम मुलाकात नहीं कर पाते... तुमने बस अपनी ही बातें करनी होती हैं मुझसे, मुझे क्या कहना है कभी तो पूछ भी लो मुझसे... मैं भी अपनी बातें बताउंगी तुम्हे...उतने ही प्यार से..वैसे ही अहसास से... मैं चाहती हूं कि बैठूं तुम्हारे पास...अपने कांपते हाथों में लेकर तुम्हारा हाथ... मगर दिल सिसक सा जाता है ऐसे ही अचानक...अमूमन... मेरे जहन में आता है कि कह दूँ तुमसे...लेकिन "तुम नहीं समझोगे" (हितेश सोनगरा)

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