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क्या करू वो है ही इतनी अच्छी सी...

सीधी साधी है वो एक बच्ची सी, क्या करू वो है ही इतनी अच्छी सी,
मुझे कहती है I Love You, और उसकी हर बात मुझे लगती है सच्ची सी...
क्या करू वो है ही इतनी अच्छी सी....

उसके बालो को देखकर लहराना अच्छा लगता है तो आँखों में डूब जाने का मन होता है,
होंठो की गुलाबी पंखुड़ियों को चूमकर गालो को सहलाने का मन होता है...
ऊँगली को गाल से कान के पीछे और फिर गले तक लाऊ तो हो जाती है सहमी सी,
सिमट जाती है मुझमे और थाम लेता हूँ मैं उसे, क्या करूँ वो है ही इतनी अच्छी सी...

कमर के साथ ऊँगली का खेल, कभी खत्म नहीं होता उसके साथ,
और अचानक ही पीठ पर पहुँच जाते है अपना नाम कुरेदते हुए हाथ....
फिर वह लगाती है अंदाजा और उसके मुंह से हल्की सिसकियों में सुनता हूँ अपना नाम,
उसकी जुबान पर अपने नाम को सुनना, फीलिंग्स है बडी अच्छी सी...
और फिर वही कहूंगा, क्या करू वो है ही इतनी अच्छी सी...

थोड़ी अच्छी सी, थोड़ी बच्ची सी और थोड़ी कच्ची सी,
लेकिन जब बाँहों में सिमट जाती है तो लगती है सबसे सच्ची सी....
क्या करू वो है ही इतनी अच्छी सी...

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