Skip to main content

गहरी बात..!!

बेजुबान पत्थर पे लदे है करोडो के गहने मंदिरो में।
उसी दहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हे हाथो को देखा है।।

सजे थे छप्पन भोग और मेवे मूरत के आगे।
बाहर एक फ़कीर को भूख से तड़प के मरते देखा है।।

लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार।
पर बाहर एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है।।

वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में हॉल के लिए।
घर में उसको 500 रूपये के लिए काम वाली बाई को बदलते देखा है।।

सुना है चढ़ा था सलीब पे कोई दुनिया का दर्द मिटाने को।
आज चर्च में बेटे की मार से बिलखते माँ बाप को देखा है।।

जलाती रही जो अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात पुजारन।
आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है।।

जिसने न दी माँ बाप को भर पेट रोटी कभी जीते जी।
आज लगाते उसको भंडारे मरने के बाद देखा है।।

दे के समाज की दुहाई ब्याह दिया था  जिस बेटी को जबरन बाप ने।
आज पीटते उसी शौहर के हाथो सरे राह देखा है।।

मारा गया वो पंडित बे मौत सड़क दुर्घटना में यारो।
जिसे खुद को काल, सर्प, तारे और हाथ की लकीरो का माहिर लिखते देखा है।।

जिसे घर की एकता की देता था जमाना कभी मिसाल दोस्तों।
आज उसी आँगन में खिंचती दीवार को देखा है।।

बन्द कर दिया सांपों को सपेरे ने यह कहकर।
अब इंसान ही इंसान को डसने के काम आएगा।।

आत्म हत्या कर ली गिरगिट ने सुसाइड नोट छोडकर।
अब इंसान से ज्यादा मैं रंग नहीं बदल सकता।।

गिद्ध भी कहीं चले गए लगता है उन्होंने देख लिया कि।
इंसान हमसे अच्छा नोंचता  है।।

कुत्ते कोमा में चले गए, ये देखकर।
क्या मस्त तलवे चाटते हुए इंसान देखा है।।

Comments

Popular posts from this blog

तुम नहीं समझोगे..!!

कैसा लगता है जब तुम कहते हो कि "तुम बस रहने दो?" तुम्हे बताऊँ...खैर रहने दो क्योंकि तुम नहीं समझोगे.. तुम नहीं समझोगे कि क्यों हम बात नहीं कर पाते, तुम नहीं समझोगे कि आखिर क्यों हम मुलाकात नहीं कर पाते... तुमने बस अपनी ही बातें करनी होती हैं मुझसे, मुझे क्या कहना है कभी तो पूछ भी लो मुझसे... मैं भी अपनी बातें बताउंगी तुम्हे...उतने ही प्यार से..वैसे ही अहसास से... मैं चाहती हूं कि बैठूं तुम्हारे पास...अपने कांपते हाथों में लेकर तुम्हारा हाथ... मगर दिल सिसक सा जाता है ऐसे ही अचानक...अमूमन... मेरे जहन में आता है कि कह दूँ तुमसे...लेकिन "तुम नहीं समझोगे" (हितेश सोनगरा)

मैं शून्य पे सवार हूँ

जाकिर खान साहब की कविता : मैं शून्य पे सवार हूँ बेअदब सा मैं खुमार हूँ अब मुश्किलों से क्या डरूं मैं खुद कहर हज़ार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ उंच-नीच से परे मजाल आँख में भरे मैं लड़ रहा हूँ रात से मशाल हाथ में लिए न सूर्य मेरे साथ है तो क्या नयी ये बात है वो शाम होता ढल गया वो रात से था डर गया मैं जुगनुओं का यार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ भावनाएं मर चुकीं संवेदनाएं खत्म हैं अब दर्द से क्या डरूं ज़िन्दगी ही ज़ख्म है मैं बीच रह की मात हूँ बेजान-स्याह रात हूँ मैं काली का श्रृंगार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ हूँ राम का सा तेज मैं लंकापति सा ज्ञान हूँ किस की करूं आराधना सब से जो मैं महान हूँ ब्रह्माण्ड का मैं सार हूँ मैं जल-प्रवाह निहार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ