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माँ तो माँ होती है...!!

ये दुनिया है तेज़ धूप, पर वो तो बस छाँव होती हैं |
स्नेह से सजी, ममता से भरी, माँ तो बस माँ होती हैं ||
हम बच्चों पर बचपन ही से वो लाड-प्यार बरसाती हैं,
पापा जब गुस्सा करते हैं तो वो उनसे भी लड़ जाती हैं |
चैन से हम सो जाते हैं जब वो पास हमारे होती हैं,
स्नेह से सजी, ममता से भरी, माँ तो बस माँ होती हैं ||
हम सब जब कुछ गलत करें तो वो प्यार से बहुत समझाती हैं,
तब भी गर हम ना सुधरें तो वो कस के रपट लगाती हैं |
खुद ही मार देने पर वो कोने में जा कर कितना रोती हैं,
स्नेह से सजी, ममता से भरी, माँ तो बस माँ होती हैं ||
माँ से बढ़कर कोई नहीं है इस सारे संसार में,
फिर भी हम उनसे दूर हैं होते, एक धोखे से प्यार में |
इतने पर भी माँ के चेहरे पर मुस्कान और दुआएं होती हैं,
स्नेह से सजी, ममता से भरी, माँ तो बस माँ होती हैं ||
ये दुनिया है तेज़ धूप, पर वो तो बस छाँव होती हैं |
स्नेह से सजी, ममता से भरी, माँ तो बस माँ होती हैं ||

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तुम नहीं समझोगे..!!

कैसा लगता है जब तुम कहते हो कि "तुम बस रहने दो?" तुम्हे बताऊँ...खैर रहने दो क्योंकि तुम नहीं समझोगे.. तुम नहीं समझोगे कि क्यों हम बात नहीं कर पाते, तुम नहीं समझोगे कि आखिर क्यों हम मुलाकात नहीं कर पाते... तुमने बस अपनी ही बातें करनी होती हैं मुझसे, मुझे क्या कहना है कभी तो पूछ भी लो मुझसे... मैं भी अपनी बातें बताउंगी तुम्हे...उतने ही प्यार से..वैसे ही अहसास से... मैं चाहती हूं कि बैठूं तुम्हारे पास...अपने कांपते हाथों में लेकर तुम्हारा हाथ... मगर दिल सिसक सा जाता है ऐसे ही अचानक...अमूमन... मेरे जहन में आता है कि कह दूँ तुमसे...लेकिन "तुम नहीं समझोगे" (हितेश सोनगरा)

मैं शून्य पे सवार हूँ

जाकिर खान साहब की कविता : मैं शून्य पे सवार हूँ बेअदब सा मैं खुमार हूँ अब मुश्किलों से क्या डरूं मैं खुद कहर हज़ार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ उंच-नीच से परे मजाल आँख में भरे मैं लड़ रहा हूँ रात से मशाल हाथ में लिए न सूर्य मेरे साथ है तो क्या नयी ये बात है वो शाम होता ढल गया वो रात से था डर गया मैं जुगनुओं का यार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ भावनाएं मर चुकीं संवेदनाएं खत्म हैं अब दर्द से क्या डरूं ज़िन्दगी ही ज़ख्म है मैं बीच रह की मात हूँ बेजान-स्याह रात हूँ मैं काली का श्रृंगार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ हूँ राम का सा तेज मैं लंकापति सा ज्ञान हूँ किस की करूं आराधना सब से जो मैं महान हूँ ब्रह्माण्ड का मैं सार हूँ मैं जल-प्रवाह निहार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ