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देखता हू जिन्दगी में, खोल कर वो खिडकिया.....

देखता हू जिन्दगी में, खोल कर वो खिडकिया |
आंसू के परदे हटाकर, छोड़ कर वो सिसकियाँ |
बस तू नजर आती है, दूर तक आसमान में |
एक तुमसे भी हमने, प्यार कुछ ऐसा किया |
भूल जाता हू सारे दर्द, खुद की रुसवाई के |
खुल जाते हे दरवाजे, बंद थे जो तन्हाई के |
जिन्दगी तलक अब, तेरे दिल में रहना है |
एक जहाँ अपना भी होगा, उसमे गाँव गलिया बस्तिया |
आंसू के परदे हटाकर, छोड़ कर वो सिसकियाँ |
उस चमचमाती रात ने, सुकूं कभी दिया नहीं |
अँधेरे के आशियाने ने, हमसे कुछ लिया नही |
देखता रहा में बस, उस छोर से इस दौर तक |
जिद से लड़ते लड़ते, मिट गयी वो हस्तियाँ |
आंसू के परदे हटाकर, छोड़ कर वो सिसकियाँ |
प्यार के समन्दर हँसी हे, आगोश में आते हे लोग |
इश्क की लहरों में दबकर, जाने क्या कर जाते हे लोग |
मुझको हे उम्मीद तुझसे, छुटे ना दामन कभी |
तूफा के बिच से भी एक दिन, पार होगी किश्तियाँ |
आंसू के परदे हटाकर, छोड़ कर वो सिसकियाँ |

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तुम नहीं समझोगे..!!

कैसा लगता है जब तुम कहते हो कि "तुम बस रहने दो?" तुम्हे बताऊँ...खैर रहने दो क्योंकि तुम नहीं समझोगे.. तुम नहीं समझोगे कि क्यों हम बात नहीं कर पाते, तुम नहीं समझोगे कि आखिर क्यों हम मुलाकात नहीं कर पाते... तुमने बस अपनी ही बातें करनी होती हैं मुझसे, मुझे क्या कहना है कभी तो पूछ भी लो मुझसे... मैं भी अपनी बातें बताउंगी तुम्हे...उतने ही प्यार से..वैसे ही अहसास से... मैं चाहती हूं कि बैठूं तुम्हारे पास...अपने कांपते हाथों में लेकर तुम्हारा हाथ... मगर दिल सिसक सा जाता है ऐसे ही अचानक...अमूमन... मेरे जहन में आता है कि कह दूँ तुमसे...लेकिन "तुम नहीं समझोगे" (हितेश सोनगरा)

मैं शून्य पे सवार हूँ

जाकिर खान साहब की कविता : मैं शून्य पे सवार हूँ बेअदब सा मैं खुमार हूँ अब मुश्किलों से क्या डरूं मैं खुद कहर हज़ार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ उंच-नीच से परे मजाल आँख में भरे मैं लड़ रहा हूँ रात से मशाल हाथ में लिए न सूर्य मेरे साथ है तो क्या नयी ये बात है वो शाम होता ढल गया वो रात से था डर गया मैं जुगनुओं का यार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ भावनाएं मर चुकीं संवेदनाएं खत्म हैं अब दर्द से क्या डरूं ज़िन्दगी ही ज़ख्म है मैं बीच रह की मात हूँ बेजान-स्याह रात हूँ मैं काली का श्रृंगार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ हूँ राम का सा तेज मैं लंकापति सा ज्ञान हूँ किस की करूं आराधना सब से जो मैं महान हूँ ब्रह्माण्ड का मैं सार हूँ मैं जल-प्रवाह निहार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ