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Showing posts from December, 2018

क्या....? काफी है...?

काफी है.... तेरा ऐसे ही आ जाना और तेरा यूं ही चला जाना... तेरा ऐसे ही शरमाना और यूं ही रूठकर बस रह जाना... काफी है... तेरा एक दीदार पाने को तेरे घर का चक्कर लगाना... और तेरा अपने घर की खिड़की से यूं चुपके से झांक जाना... काफी है... तेरा बेवजह मुझे यूं अपना प्यार बताना और... मेरा नासमझ की तरह उसे ना समझ पाना... लेकिन... क्या काफी है तेरा इस कदर रूठ जाना... और फिर कभी पलटकर ना देखने का हठ कर जाना... क्या....? काफी है...? # hiteshsongara

अभी कल ही की तो बात है...

वो हर सुबह जल्दी मां जगा दिया करती थी, कभी हाथ थामकर तो कभी मारकर स्कूल भगा दिया करती थी... हम भी बेमन अपनी पगडंडी पर उस ओर निकल जाया करते थे, शाम को जल्दी वापस घर आना है, खेलने जाना है..सोच में डूब जाता करते थे.... अभी कल ही की तो बात है.... कुछ बड़े हुए स्कूल छोड़ा और कॉलेज की राह पर खुद ही निकल जाया करते थे, मां सुबह तो अब भी जल्दी ही उठाती थी लेकिन अब हम भी उठ जाया करते थे... घर से निकलते कॉलेज जाते और मस्ती में डूबे शाम को नहीं... हां लेकिन रात को घर की ओर निकल ही आया करते थे.... अभी कल ही की तो बात है...