Skip to main content

Posts

Showing posts from February, 2018

एक कहानी-बड़ी पुरानी (3)

वो जो पल होते हैं ना जब आप किसी के इंतजार में बैठे होते हैं, ये जानते हुए कि इस इंतजार का फल भी केवल कोरा इंतजार ही होगा....लेकिन फिर भी आप अपनी टूटी हुई एक उम्मीद के सहारे उस एक पल का इंतजार करना नहीं छोड़ते....किसी उपन्यास में तो नहीं लेकिन हाँ आम भाषा में ही इसे प्यार कहा गया है....कहीं आप भी तो नहीं कर बैठे यह छोटा सा इंतजार या फिर थोडा सा प्यार  ;-)   :D

एक परिंदा....

फिर आज...सोने की ना-कामयाब कोशिश करता एक परिंदा, ना चाहते हुए भी नींद को ख्वाबों में ढूंढता एक परिंदा... एक परिंदा जो कल कभी डाल-डाल कभी पात-पात घूमता फिर रहा था, आज ख़ामोशी में डूबा हुआ कहीं बाग़-बाग़ घूम रहा है... वो जो उसके बैठने के ठिकाने हुआ करते थे कभी, सुना हैं आज जमीं पर धराशायी हुए पड़े हैं कहीं... कुछ लोग आए थे साथ अपने आरी और कुछ औजार लिए, मन में लालच और आँखों में पैसों की घनघोर बौछार लिए... पेड़ काट गए, छाँव बांट गए और साथ ले गए अपने उनका बसेरा, साथ ले गये वो पंछियों का सुकून और कभी ना हो सकने वाला सवेरा...